ईरान और इजराइल के बीच 12 दिन तक चले भीषण संघर्ष के बाद अब दोनों देशों के बीच सीजफायर हो चुका है। इस जंग को समाप्त कराने में अमेरिका की भूमिका अहम रही है, जिसने मध्यस्थता कर दोनों पक्षों को बातचीत के लिए मजबूर किया। अमेरिका ने ईरान के परमाणु संयंत्रों पर किए गए हमलों से उनके परमाणु कार्यक्रम को बड़ा नुकसान पहुंचाया है। सीजफायर के बाद नाटो समिट में पहुंचे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक चौंकाने वाला बयान दिया, जिसमें उन्होंने कहा कि ईरान को हुए नुकसान के कारण उसे तेल निर्यात बढ़ाने की अनुमति दी जा सकती है। ट्रंप के इस बयान ने उनके कट्टर आलोचकों को भी हैरान कर दिया क्योंकि वे अक्सर ईरान के खिलाफ सख्त रुख अपनाते रहे हैं।
ट्रंप ने चीन के खिलाफ नरमी के संकेत दिए
नाटो समिट में प्रेस वार्ता के दौरान ट्रंप ने कहा कि ईरान को अपने परमाणु संयंत्रों के पुनर्निर्माण के लिए काफी वित्तीय सहायता की आवश्यकता है, जिसे वह तेल के निर्यात से हासिल कर सकता है। उन्होंने खुलासा किया कि अगर चीन ईरान से तेल खरीदना चाहता है तो अमेरिका को इसमें कोई आपत्ति नहीं होगी। हालांकि, उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इसका मतलब यह नहीं है कि ईरान पर लगे सभी प्रतिबंध हटा दिए जाएंगे। कुछ प्रतिबंध बरकरार रहेंगे लेकिन उनमें ढील दी जाएगी। यह संकेत एक बड़ी कूटनीतिक छूट जैसा माना जा रहा है, जो अमेरिका द्वारा ईरान के प्रति अपनी नीति में बदलाव का इशारा करता है।
ईरान की बहादुरी की भी की तारीफ
ट्रंप ने नाटो समिट में कहा कि ईरान ने इस युद्ध में काफी बहादुरी और दृढ़ता से मुकाबला किया है। उन्होंने ईरान को एक बड़ा तेल कारोबारी बताया और कहा कि वे अपनी जरूरत के मुताबिक तेल बेच सकते हैं। उनका यह बयान ईरान के लिए राहत भरा है, क्योंकि इससे साफ होता है कि अमेरिका ईरान के साथ व्यापारिक रिश्ते सुधारने की दिशा में सोच रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप की यह टिप्पणी न केवल ईरान के लिए बल्कि चीन को भी यह संदेश देती है कि अमेरिका व्यापार को लेकर चीन के साथ बातचीत करने को तैयार है।
अमेरिकी खुफिया रिपोर्ट लीक से बढ़ी मुश्किलें
हालांकि ट्रंप ने ईरान के परमाणु ठिकानों को नष्ट करने का दावा किया था, लेकिन इस दावे के लिए दुनिया भर से सबूत मांगे जाने लगे हैं। इस दवाब ने अमेरिकी राष्ट्रपति की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। इसके बाद अमेरिकी न्यूज़ चैनल सीएनएन की एक खुफिया रिपोर्ट ने इस मामले में नया मोड़ दिया। रिपोर्ट के अनुसार अमेरिकी हमलों से ईरान के परमाणु केंद्रों को अपेक्षित नुकसान नहीं पहुंचा है, जो ट्रंप के दावे को कमजोर करता है। इस रिपोर्ट के आने के बाद ट्रंप काफी झल्लाए हुए दिखे। इस विवाद ने उनके बयान की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है।
ट्रंप का नोबेल शांति पुरस्कार का सपना
नाटो समिट में अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में ट्रंप ने एक बार फिर भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि इस साल उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार मिलना चाहिए। ट्रंप चाहते हैं कि वे अमेरिकी इतिहास के पांचवें ऐसे राष्ट्रपति बनें जिन्हें शांति के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार मिला हो। उनके इस बयान से साफ है कि वे अपनी कूटनीतिक उपलब्धियों को वैश्विक स्तर पर मान्यता दिलाने के इच्छुक हैं।
आगामी चुनौतियां और संभावनाएं
ईरान-इजराइल के बीच यह संघर्ष तो समाप्त हो गया है, लेकिन क्षेत्रीय स्थिरता के लिए अभी कई चुनौतियां बरकरार हैं। ईरान के परमाणु कार्यक्रम को भारी नुकसान पहुंचाने के बावजूद, लंबे समय तक इसे पूरी तरह समाप्त करना आसान नहीं होगा। वहीं, अमेरिका की नरम रुख और प्रतिबंधों में ढील से ईरान के पुनर्निर्माण की प्रक्रिया तेज हो सकती है।
इस बीच चीन की भूमिका भी महत्वपूर्ण बनी हुई है। अमेरिका ने खुले तौर पर संकेत दिए हैं कि यदि चीन ईरान से तेल खरीदेगा तो यह कोई समस्या नहीं होगी। इससे चीन और अमेरिका के बीच व्यापारिक संबंधों में सुधार की संभावना बढ़ सकती है। हालांकि, यह भी स्पष्ट है कि अमेरिका ईरान के प्रति पूरी तरह से प्रतिबंध हटा रहा है, ऐसा नहीं है। आर्थिक और कूटनीतिक दबाव जारी रहेगा, लेकिन थोड़ा अधिक लचीलापन दिखाया जाएगा।
निष्कर्ष
ईरान और इजराइल के बीच 12 दिन की जंग खत्म होने के बाद सीजफायर ने एक नए अध्याय की शुरुआत की है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस स्थिति में बदलाव के संकेत दिए हैं, जिनमें ईरान को आर्थिक राहत देने और चीन के साथ व्यापार को प्रोत्साहित करने की रणनीति शामिल है। हालांकि ट्रंप के परमाणु ठिकानों को नष्ट करने के दावे को लेकर विवाद और जांच जारी है, लेकिन यह स्पष्ट है कि क्षेत्र में स्थिरता और शांति के लिए नई कूटनीतिक कोशिशें शुरू हो गई हैं।
आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या ईरान अपनी परमाणु महत्वाकांक्षा को पूरी तरह छोड़ता है और क्या अमेरिका, चीन तथा अन्य वैश्विक शक्तियां मिलकर मध्यपूर्व में स्थिरता बनाए रखने में सफल होती हैं। ट्रंप का नोबेल शांति पुरस्कार का सपना भी इस दिशा में उनके प्रयासों का महत्वपूर्ण हिस्सा साबित हो सकता है।